मंगलवार, 14 फ़रवरी 2023

पूंडरी

 भुली बिसरी यादें 

पूंडरी की कुछ यादें हैं 

बहुत बड़ा मकान था । ग्राउंड था आधा एकड़ का। एक बहुत बड़ा हाल था । 300-400 गज पर पूर्व  की तरफ मैन रोड थी उसके दूसरी और बड़ा तैलाब था। शुरू में ही बहुत बड़ी ड्यौढ़ी थी।

पूंडरी से पिताजी का सिरसा तबादला हो गया 1956 में। मॉडल स्कूल में  दाखिला लिया पहली जमात में और दुसरी में हुआ तो सिरसा से रोहतक का तबादला हो गया।

सिरसा में डाक खाने वाली गली में किराए के मकान में रहते थे । बिमला बहिन, सन्तोष बहिन, निर्मला बहिन । कमला बहिनजी और शकुंतला बहिन जी की शादी हो चुकी थी। 

डाक खाने में कार्यरत कर्म चारी का लड़का था राधे श्याम उससे मेरी दोस्ती थी। डाक खाने के पूर्व की ओर एक बहुत बड़ा ग्राउंड था और उसके दूसरी तरफ जेल थी। सरदार प्रीतम सिंह बेलदार थे जो घर भी कई बार आते थे। तहसीलदार थे चौधरी बदलू राम उनके परिवार से भी मिलना जुलना था। घर के पश्चिम की तरफ मेन रोड थी जिसे डबवाली रोड कहा जाता था। 

    सिरसा से रोहतक एक ट्रक में समान लादकर रोहतक पहुंचे। सरदार प्रीतम सिंह बेलदार हमारे साथ आये थे। बदलू राम जी का लड़का भी बहुत बार घर आता था। 

तीनों बहने गर्ल्स स्कूल में पढ़ने जाती थी। 

मंगलवार, 7 फ़रवरी 2023

Family

 Family

माता जी हँसकौर इनके पिता जी
मौसी छनकौर
मौसी ज्ञानकौर इनके पिता जी
मामा -जोधसिंह -इनके पिता जी
--मुखत्यारा, भरत सिंह, किताबो, ब्रह्मो
मामा -बजे सिंह मूर्ति कौसल्या
मामा बलबीर सिंह मोहिंदर
मामा करतार सिंह --
मामा दिलबाग सिंह यशपाल, राजेश
मामा प्रताप सिंह .रविंदर
जरा पूरा करके भेजना परिवार का परिचय यशपाल जी।
पिताजी चौधरी जागे राम
चाचा ओमप्रकाश--- प्रेम , सतबीर, रामबीर
चाचा सुरजे--महिंदर
चाचा दिवाना कृष्ण
चाचा चन्दर  सुरेश, धर्मबीर
NAYA BAS

जोध सिंह के पिता जीयाराम
जोध सिंह के बच्चे किताब कौर, भरम कौर, फूलवती, मुख्त्यार सिंह
सौतेली माँ - भरत सिंह, सार्तो
भारत सिंह के बच्चे जय सिंह, सोमबीर, सुरेंद्र, बाला देवी, दर्शना
मुख्त्यार सिंह के बच्चे जगबीर, सुरेश, राकेश, सरोज, सीमा
जय सिंह के बच्चे रिंकू, रीनू
सोमबीर के बच्चे रवि, अंजलि, मनीषा
जगबीर के बच्चे शादिकांत, हीना
सुरेश के बच्चे साजन, शिवानी
रिंकू के बच्चे लक्ष्य, नैतिक
नीरज के बच्चे कृतिका, नवजात शिशु
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हंसकौर, छणकौर, रत्न के पिता देशराम
ज्ञानकौर, बाजे सिंह, बलबीर सिंह, करतार सिंह, दिलबाग सिंह, प्रताप सिंह के पिता कनियालाल
राममूर्ति देवी, बिमला, निर्मला, कौशल्या, बबली के पिता बाजे सिंह
राजेंद्र, महेंद्र, नरेंद्र, संतोष, सुदेश, बबीता के पिता बलबीर सिंह
वीरेंद्र, विनोद, सुनीता के पिता करतार सिंह
यशपाल, राजेश के पिता दिलबाग सिंह
रविंदर, उषा के पिता प्रताप सिंह
राजेंद्र के बच्चे अनुज, सोनिया, अनु
महेंद्र के बच्चे नीरज, नीना
नरेंद्र के बच्चे अरुण, आरजू
बीरेंद्र के बच्चे राहुल, अंशु
यशपाल के बच्चे समीक्षा, कीर्ति, अजय
राजेश के बच्चे शिखा, आकाश
रविंदर के बच्चे नंदिनी, गजेंद्र
माता हँसकौर के पिता जी देशराम
पिता जी के मामा बराही में थे।
उन्होंने ही पिता जी को पढ़ाया
मामा थे जमना
उनके बेटे थे रामफल
रामफल जी के बेटे सोमेश उनके साथ फोटो खिंचवाया। बराही गांव के जोहड़ के फोटो लिए थे।
24 जनवरी को शालू राजू की मैरिज अन्निवेरसरी थी।

गुरुवार, 7 नवंबर 2019

एंगेल्स से मुलाकात

एंगेल्स से मुलाकात
राइनिश ज़ाइटुंग के दमन के पश्चात मार्क्स और उनकी पत्नी पेरिस चले गये। वहाँ मार्क्स ने कुछ समय के लिए प्न्सिशे ज़ारबुख़ेर डायचे में और बाद
में पेरिस वोर्वेर्ट्स में काम किया। पहले अख़बार में काम करते समय मार्क्स
प्ऱफेडरिक एंगेल्स से परिचित हुए और तभी से दोनों अनन्यतम व्यक्तिगत,
राजनीतिक और साहित्यिक मित्रा बन गये। इसी समय तक मार्क्स अपनी
भौतिकवादी अवधारणाओं की आधारभूत शुरुआत कर चुके थे जिनकी चर्चा हम
आगे चलकर करेंगे। इस शुरुआत तक मार्क्स मुख्यतया दर्शनशास्त्रा के माध्यम से
पहुँचे थे।
दूसरी ओर एंगेल्स, जो कि एक लम्बे समय तक आधुनिक उद्योग की
जन्मभूमि इंग्लैण्ड में रह चुके थे, समान निष्कर्षों पर इंग्लैण्ड के औद्योगिक
जीवन की व्यावहारिक परिस्थितियों के अध्ययन से पहुँचे थे। इस तरह दोनों
एक-दूसरे के पूरक थे और दोनों ने मिलकर वह कर दिखाया जो अकेले के लिए
असम्भव न भी हो तो कहीं अधिक कठिन तो अवश्य ही होता। अब से वे दोनों
लगभग प्रतिदिन ही सम्पर्क में बने रहे, चाहे व्यक्तिगत रूप से या पत्रों के माध्यम
से, और उनके ये साहित्यिक सम्बन्ध कितने रोचक और घनिष्ठ थे, यह कुछ वर्ष
पूर्व जर्मनी में बेबेल और बर्नस्टीन द्वारा चार खण्डों में प्रकाशित उनके पत्रों से
पता चल जाता है।
मार्क्स ने अपने सम्मिलित काम के सै(ान्तिक पक्ष के अध्ययन
और शोध पर ध्यान केन्द्रित किया तो वहीं एंगेल्स ने अपनी उफर्जा अपने
सै(ान्तिक निष्कर्षों के व्यावहारिक उपयोग, और विशेष रूप से आगे चलकर
अपने विचारों के प्रचार और अपने विरोधियों से विचारधारात्मक संघर्ष पर
लगायी। परन्तु ख़ुद एंगेल्स ने इस बात की पुष्टि की है कि उनके द्वारा लिखे गये
प्रत्येक शब्द और उनके द्वारा अपनायी गयी हर नीति पर वे दोनों पहले आपस
में चर्चा करते थे।
उनकी भौतिकवादी द्वन्द्वात्मक पद्धति 
के माध्यम से होता है। इस दर्शन का नियम है कि नूतन का बीज पुरातन में ही
विद्यमान होता है और जैसे-जैसे यह बीज विकसित होता है, प्रारम्भ में दोनों के
बीच का अन्तर सिप़र्फ मात्रात्मक होता है पर जब यह अन्तर एक निश्चित स्तर
तक पहुँच जाता है तो दोनों के बीच एक निर्णायक विभाजन होता है और अन्तर
गुणात्मक हो जाता है। यह नियम समस्त जैविक और निर्जीव प्रकृति पर लागू
होता है, और शायद कुछ उदाहरणों से इसे स्पष्ट करना समीचीन होगा। केमिस्ट्री
में हम लोग कार्बन यौगिकों की कई श्रृंखलाओं से परिचित हैं जो एक-दूसरे से
मात्रा कार्बन और हाइड्रोजन परमाणुओं की संख्या की दृष्टि से भिन्न होती हैं।
अगर हम उदाहरण के लिए मार्श गैस को लें तो इसे हम ब्भ्4 से अभिव्यक्त
करते हैं। अगर हम इसमें किन्हीं भी परिस्थितियों में कार्बन ;ब्द्ध या हाइड्रोजन
;भ्द्ध जोड़ें तो हमें मात्रा मार्श गैस और कार्बन या हाइड्रोजन का मिश्रण मिलता
है। और ये तब तक चलता रहेगा जब तक कि हम इसमें कार्बन के एक और
हाइड्रोजन के दो परमाणुओं के अनुपात में कोई विशिष्ट मात्रा न जोड़ दें जब
कि इस यौगिक की पूरी प्रकृति ही बदल जाती है और हमें नये गुणधर्मों से युक्त
एक नयी ही गैस ऐसीटिलीन मिलती है यह प्रक्रिया इसी प्रकार आगे बढ़ती
रहती है। मात्रा गुण में परिवर्तित हो गयी है। अब भौतिकी से एक सरल-सा
उदाहरण लेते हैं। पानी को उफष्मा देने से यह और गरम, और गरम होता जाता
है परन्तु एक निश्चित बिन्दु तक अन्तर मात्रा ताप के परिमाण का रहता है गहराई
में देखें तो ठण्डा पानी और गरम पानी एक ही द्रव होते हैं, पर जब दी गयी
उफष्मा एक निश्चित स्तर, 100ह्थ् या 212ह्थ् पर पहुँचती है तो पानी एकाएक
ही एक नये पदार्थ - भाप - में बदल जाता है, एक ऐसी गैस में जिसके गुणधर्म
पानी से नितान्त भिन्न हैं। मात्रा गुण में परिवर्तित हो गयी है। अब एक उदाहरण
इतिहास से लेते हैं। जब तक श्रमिक ज़मीन से बँधा था समाज भी भूदास व्यवस्था
के स्तर पर था। परन्तु उत्पादन और वाणिज्य के विकास के साथ-साथ ही यह
भी उत्तरोत्तर अधिक आवश्यक होता गया कि कुछ क्षेत्रों में श्रमिकों की मुक्त
उपलब्धता सुनिश्चित की जाये और यह तभी सम्भव हो सकता था जब मज़दूरों
या भावी मज़दूरों को उन स्थानों की यात्रा करने की स्वतन्त्राता हो जहाँ रोज़गार
के अवसर उपलब्ध हों।
साथ ही जैसे-जैसे कृषि के पुराने रूप और तरीव़फे पुराने
या भूस्वामियों के लिए अलाभप्रद होते गये वैसे-वैसे ही उन्होंने अपने भूमिदासों
को आवागमन की स्वतन्त्राता देना प्रारम्भ कर दिया या पिफर उनके बँधुआ श्रम का
अपने मौद्रिक भुगतानों या लगान के भुगतान के रूप में प्रयोग करना प्रारम्भ कर
दिया। इस तरह क्रमशः समाज में भूदासत्व के उन्मूलन के लिए परिस्थितियाँ
विकसित होती गयीं और जब यह विकास एक निश्चित अवस्था तक पहुँच गया
तो भूदासत्व स्वतन्त्रा निजी उत्पादन से विस्थापित हो गया। कुछ मामलों में यह
परिवर्तन बहुत अधिक हिंसा का परिणाम था जबकि कुछ अन्य मामलों में
अपेक्षतया कम हिंसा से ही काम चल गया। कुछ मामलों में परिवर्तन काप़फी तेज़ी
से तो कुछ अन्य मामलों में धीमे-धीमे हुआ। परन्तु सभी मामलों में यह एक
क्रान्तिकारी परिवर्तन था - एक नयी सामाजिक व्यवस्था ने पुरानी का स्थान ले
लिया क्योंकि नयी परिस्थितियों में परिवर्तन अनिवार्य हो गया था।
स्थानाभाव के कारण हम यहाँ सारे विज्ञानों और जीवन के सारे अनुभवों के
उदाहरण नहीं दे सकते। मार्क्स और एंगेल्स ने हीगेल के दर्शन से अध्ययन के
इन नियमों और प(तियों को अपनाया था। पर जहाँ वे हीगेल की द्वन्द्वात्मक
प(ति से दृढ़ता से जुड़े रहे वहीं उन्होंने उसकी भाववादी सै(ान्तिक अधिरचना
को अस्वीकार कर दिया।
अन्य सभी भाववादी दार्शनिक सम्प्रदायों की ही तरह
हीगेलियन दर्शन भी यह मानकर चलता है कि विचार वास्तविक परिस्थितियों के
बिम्ब नहीं होते, अपितु उनकी अपनी स्वतन्त्रा सत्ता होती है, और उनके विकास
पर ही अन्य सभी वस्तुओं का विकास आधारित होता है। मार्क्स और एंगेल्स ने
इस धारणा को नकार दिया। उन्होंने वास्तविक परिस्थितियों से स्वतन्त्रा व असम्ब(
विचार और विचारधारा की अवधारणा के स्थान पर भौतिकवाद, वस्तुगत विश्व,
प्रकृति, और इतिहास को सारे विकास का आधार बताया। 1845 में प्रकाशित
अपनी पुस्तक द होली प़फैमिली में उन्होंने इस नये द्वन्द्वात्मक भौतिकवाद को
अभिव्यक्ति देने के साथ ही साथ परम्परावादी बुर्जुआ हीगेलियनों द्वारा हीगेल के
दर्शन के अनुप्रयोग का खण्डन भी किया। आगे चलकर उन दोनों ने उसी विषय
पर एक और पुस्तक भी लिखी जो कि यद्यपि प्रकाशित नहीं हुई, परन्तु पिफर
भी जो उन्हें अपने विचारों को और भी स्पष्ट करने और अपनी भौतिकवादी
अवधारणाओं पर और भी बेहतर पकड़ बनाने में सहायक हुई।
इसी बीच मार्क्स पेरिस में राजनीतिक अर्थव्यवस्था के अध्ययन और प्रशाई
सरकार के विरु( गम्भीर विचारधारात्मक संघर्ष में लगे रहे। प्रशाई सरकार ने
इसका बदला मार्क्स को पेरिस से निष्कासित करवाके लिया। मार्क्स तब ब्रसेल्स
चले गये, जहाँ वे जब-तब डायचे ब्रस्सेलेर ज़ाइटुंग में लिखते रहे।
1846 की मुक्त व्यापार कांग्रेस में उन्होंने मुक्त व्यापार के बारे में एक भाषण
दिया जो बाद में एक पैम्प़फलेट के रूप में प्रकाशित हुआ, और 1847 में उन्होंने
प्रूधों की पुस्तक दरिद्रता का दर्शन के जवाब में प्ऱफांसीसी भाषा में दर्शन की
दरिद्रता लिखी। इस पुस्तक में मार्क्स ने हेगेल के द्वन्द्ववाद को अपने और एंगेल्स
के क्रान्तिकारी भौतिकवादी रूप में प्रयुक्त करते हुए सामाजिक विकास नियमों
को उजागर करने के साथ ही वैज्ञानिक समाजवाद के मूल तत्वों को भी विकसित
किया है।

विवाह

विवाह
लगभग उसी समय मार्क्स ने अपनी सखी और बचपन और युवावस्था की साथी, जेनी वोन वेस्टपफालेन से शादी कर ली जो कि ख़ुद भी बहुत ही बुद्धिमती और सुशिक्षित महिला थीं। मार्क्स को उनसे बेहतर जीवनसाथी मिल ही नहीं सकता था। विवाह के दिन से अपनी मृत्यु के दिन तक वे अपने पति के सारे सुख-दुख, सारी आशाओं-आकांक्षाओं की सहभागी रहीं। वे दोनों एक-दूसरे के लिए समर्पित थे। मेहरिंग के कथनानुसार इस घोर नास्तिक और कम्युनिस्ट के एक कट्टर विरोधी ने भी इस विवाह को ईश्वर द्वारा नियोजित बताया था।

प्रारम्भिक राजनीतिक गतिविधियाँ

प्रारम्भिक राजनीतिक गतिविधियाँ
मार्क्स 16 वर्ष की आयु में बोन विश्वविद्यालय में दाखि़ल हुए, और 1836 में अपने पिता की इच्छानुसार कानून की पढ़ाई करने के लिए बर्लिन विश्वविद्यालय चले गये, पर ऐसा लगता नहीं कि उन्होंने अपनी पढ़ाई पर अधिक ध्यान दिया हो। उनका मन दर्शनशास्त्रा में अधिक लगता था और यद्यपि उनके माता-पिता तो निराश हुए पर विश्व को निस्सन्देह इससे बहुत लाभ मिला कि युवा मार्क्स दर्शनशास्त्रा के एक उत्साही अध्येता बन गये और बर्लिन की यंग हीगेलियन्ज़ की जमात में शामिल हो गये। वहाँ उनका परिचय कहीं अधिक वरिष्ठ लोगों जैसे ब्रूनो बावेर और एफ कोपेन्स से हुआ जिन्होंने जल्दी ही इस युवा अध्येता की प्रतिभा को पहचान लियाऋ यद्यपि आगे चलकर उनके मार्क्स से बहुत ही आधारभूत मतभेद होने वाले थे। उस समय भी मार्क्स की ज्ञान की प्यास असीम थी और उनकी काम करने और आत्मलोचना की क्षमता, और किसी भी दार्शनिक इतिहास सम्बन्धी प्रश्नों के समाधान की दिशा में सारे ही तथ्यों पर बारीकी से ध्यान देने की उनकी क्षमता अद्भुत थी। 1841 में मार्क्स ने अपनी
डॉक्टरेट की उपाधि प्राप्त कर ली और विश्वविद्यालय में दर्शनशास्त्रा के प्रवक्ता के रूप में जमने की योजना बनाने लगे पर अपने मित्रा बावेर, जो वहीं एक अराजकीय प्रवक्ता थे और अधिकारियों द्वारा आये दिन प्रताड़ित किये जाते थे, के अनुभव से मार्क्स ने समझ लिया कि वे ऐसी अवस्थिति में टिक नहीं पायेंगे। उसी वर्ष राइनिश बुर्जुआ वर्ग ने एक नया विपक्षी अख़बार राइनिश ज़ाइटुंग प्रारम्भ किया और यद्यपि मार्क्स की आयु उस समय मात्रा 24 वर्ष थी, उन्हें अख़बार का सम्पादक नियुक्त किया गया। उनके सम्पादन का दौर सेंसरशिप के विरुद्ध एक अनवरत संघर्ष रहा। एंगेल्स के शब्दों में, फ्मगर सेंसरशिप राइनिश ज़ाइटुंग से छुटकारा नहीं पा सकी। मार्क्स की लोगों को प्रभावित करने और अपने पक्ष में कर सकने की अद्भुत क्षमता यहाँ भी भलीभाँति दिखायी दी। सेंसर ने अनेक ऐसे अंश प्रकाशित हो जाने दिये जिनसे बर्लिन के अधिकारीगण अप्रसन्न हो गये। सेंसरकर्ता न सिर्फ फटकारे जाते रहे बल्कि लगातार बदले भी जाते रहे, पर कोई अन्तर नहीं पड़ा और अन्ततः सरकार ने इस सरदर्द से छुटकारा पाने का सबसे अच्छा और सुनिश्चित तरीका अपनाया। राइनिश ज़ाइटुंग का पूरी तरह दमन कर दिया गया। उसी समय मार्क्स को तथाकथित भौतिक हितों को लेकर विवाद, जंगलात की चोरियों, मुक्त व्यापार, संरक्षण जैसे मुद्दों को लेकर हुए विवादों पर जिस उलझन का सामना करना पड़ा उससे उन्हें आर्थिक प्रश्नों का अध्ययन करने की पहली प्रेरणा मिली।

बेटी एलिनोर

उनकी बेटी एलिनोर बताती हैं कि फ्मार्क्स के सहपाठी उन्हें प्यार भी करते थे और उनसे भयभीत भी रहते थे - प्यार इसलिए क्योंकि मार्क्स लड़कों की शरारतों में शामिल होने को हमेशा तैयार रहते थे और भयभीत इसलिए क्योंकि वे चुभती हुई व्यंग कविताएँ लिखते थे और अपने विरोधियों का जमकर मखौल उड़वाते थे। जीवन भर कविता, कला और संगीत में उनकी गहरी दिलचस्पी बनी रही। होमर, दान्ते, शेक्सपियर, सर्वेन्टीज, बाल्ज़ाक, शेड्रिन, और पुश्किन उनके प्रिय लेखक थे। तत्कालीन जर्मनी के सभी क्रान्तिकारी कवियों - हाइने,
फ्रेलिग्राथ , और वीर्ह्ट से तो उनकी व्यक्तिगत मित्राता थी. मार्क्स ने उन्हें न केवल उनकी अनेक क्रान्तिकारी कविताओं के लिए प्रेरित किया था बल्कि जब वे हाइने के साथ पेरिस में थे तो अक्सर हाइने को अपनी कविताओं की पंक्तियाँ परिमार्जित करने में सहायता करते थे कभी-कभी तो किसी कविता के एक-एक शब्द को लेकर उनके बीच तब तक विचार-विमर्श चलता रहता था जब तक कि पूरी कविता ही स्पष्ट और परिष्कृत न हो जाये। मार्क्स लगभग आधा दर्जन भाषाएँ जानते थे और साहित्यिक प्ऱफेंच और अंग्रेज़ी तो मूल भाषा-भाषियों की
तरह लिख सकते थे विज्ञान की प्रगति में भी उनकी गहरी रुचि थी। लीबनेख़्त बताते हैं कि जब 1850 में बिजली का पहला इंजन प्रदर्शित किया गया तो मार्क्स कितने जोश से भर गये थे। एंगेल्स ने काप़फी ज़ोर देकर उस ख़ुशी का वर्णन किया है जो मार्क्स को तब होती थी जब सैद्धान्तिक विज्ञान के क्षेत्रा में कोई नयी खोज सामने आती थी. यद्यपि एंगेल्स आगे कहते हैं कि ये ख़ुशी उस उल्लास के सामने कुछ भी नहीं थी जो मार्क्स तब अनुभव करते थे जब ऐसी खोज तत्काल ही उद्योगों में प्रयुक्त भी होकर सामाजिक विकास में योगदान करने लगती थी। जब 1859 में डार्विन की ऑरिजिन ऑप़फ स्पेसीज़ प्रकाशित हुई तभी, बल्कि उससे पहले ही मार्क्स ने डार्विन के काम के युगान्तरकारी महत्व को पहचान लिया था और महीनों तक जर्मन प्रवासियों के बीच डार्विन के अतिरिक्त और किसी विषय की चर्चा ही नहीं हुई। ये उल्लेख हम मार्क्स के बहुआयामी व्यक्तित्व पर प्रकाश डालने के अतिरिक्त इस प्रचलित धारणा के खण्डन के लिए भी कर रहे हैं कि मार्क्स एक फ्रूखे-सूखेय् अर्थशास्त्राी भर थे। मार्क्स की कृतियों के बारे में हम आगे चलकर चर्चा करेंगे, पर यहाँ इतना तो कहा ही जा सकता है कि यद्यपि मार्क्स भी
अर्थशास्त्राीय विज्ञान को एकदम सरल तो नहीं बना सकते थे, फिर भी विषय के अपेक्षतया अधिक औपचारिक पहलुओं की चर्चा भी उन्होंने वैसे नीरस ढंग से नहीं की जैसे कि पुराने अर्थशास्त्रिायों ने। पूँजी  तक के ऐतिहासिक अनुच्छेद भी मानवीय संवेदना और समझ से भरपूर हैं दृष्टान्त इतने उपयुक्त हैं, व्यंग इतना सहज और सटीक, कि औसत बुद्धिमत्ता और सामान्य प्राथमिक शिक्षा वाले किसी मज़दूर को भी उनकी रचनाओं के अध्ययन से घबराने की आवश्यकता नहीं हैबशर्ते कि उसमें एकाग्रचित्त होने की क्षमता और सीखने की लगन हो।