एंगेल्स से मुलाकात
राइनिश ज़ाइटुंग के दमन के पश्चात मार्क्स और उनकी पत्नी पेरिस चले गये। वहाँ मार्क्स ने कुछ समय के लिए प्न्सिशे ज़ारबुख़ेर डायचे में और बाद
में पेरिस वोर्वेर्ट्स में काम किया। पहले अख़बार में काम करते समय मार्क्स
प्ऱफेडरिक एंगेल्स से परिचित हुए और तभी से दोनों अनन्यतम व्यक्तिगत,
राजनीतिक और साहित्यिक मित्रा बन गये। इसी समय तक मार्क्स अपनी
भौतिकवादी अवधारणाओं की आधारभूत शुरुआत कर चुके थे जिनकी चर्चा हम
आगे चलकर करेंगे। इस शुरुआत तक मार्क्स मुख्यतया दर्शनशास्त्रा के माध्यम से
पहुँचे थे।
दूसरी ओर एंगेल्स, जो कि एक लम्बे समय तक आधुनिक उद्योग की
जन्मभूमि इंग्लैण्ड में रह चुके थे, समान निष्कर्षों पर इंग्लैण्ड के औद्योगिक
जीवन की व्यावहारिक परिस्थितियों के अध्ययन से पहुँचे थे। इस तरह दोनों
एक-दूसरे के पूरक थे और दोनों ने मिलकर वह कर दिखाया जो अकेले के लिए
असम्भव न भी हो तो कहीं अधिक कठिन तो अवश्य ही होता। अब से वे दोनों
लगभग प्रतिदिन ही सम्पर्क में बने रहे, चाहे व्यक्तिगत रूप से या पत्रों के माध्यम
से, और उनके ये साहित्यिक सम्बन्ध कितने रोचक और घनिष्ठ थे, यह कुछ वर्ष
पूर्व जर्मनी में बेबेल और बर्नस्टीन द्वारा चार खण्डों में प्रकाशित उनके पत्रों से
पता चल जाता है।
मार्क्स ने अपने सम्मिलित काम के सै(ान्तिक पक्ष के अध्ययन
और शोध पर ध्यान केन्द्रित किया तो वहीं एंगेल्स ने अपनी उफर्जा अपने
सै(ान्तिक निष्कर्षों के व्यावहारिक उपयोग, और विशेष रूप से आगे चलकर
अपने विचारों के प्रचार और अपने विरोधियों से विचारधारात्मक संघर्ष पर
लगायी। परन्तु ख़ुद एंगेल्स ने इस बात की पुष्टि की है कि उनके द्वारा लिखे गये
प्रत्येक शब्द और उनके द्वारा अपनायी गयी हर नीति पर वे दोनों पहले आपस
में चर्चा करते थे।
उनकी भौतिकवादी द्वन्द्वात्मक पद्धति
के माध्यम से होता है। इस दर्शन का नियम है कि नूतन का बीज पुरातन में ही
विद्यमान होता है और जैसे-जैसे यह बीज विकसित होता है, प्रारम्भ में दोनों के
बीच का अन्तर सिप़र्फ मात्रात्मक होता है पर जब यह अन्तर एक निश्चित स्तर
तक पहुँच जाता है तो दोनों के बीच एक निर्णायक विभाजन होता है और अन्तर
गुणात्मक हो जाता है। यह नियम समस्त जैविक और निर्जीव प्रकृति पर लागू
होता है, और शायद कुछ उदाहरणों से इसे स्पष्ट करना समीचीन होगा। केमिस्ट्री
में हम लोग कार्बन यौगिकों की कई श्रृंखलाओं से परिचित हैं जो एक-दूसरे से
मात्रा कार्बन और हाइड्रोजन परमाणुओं की संख्या की दृष्टि से भिन्न होती हैं।
अगर हम उदाहरण के लिए मार्श गैस को लें तो इसे हम ब्भ्4 से अभिव्यक्त
करते हैं। अगर हम इसमें किन्हीं भी परिस्थितियों में कार्बन ;ब्द्ध या हाइड्रोजन
;भ्द्ध जोड़ें तो हमें मात्रा मार्श गैस और कार्बन या हाइड्रोजन का मिश्रण मिलता
है। और ये तब तक चलता रहेगा जब तक कि हम इसमें कार्बन के एक और
हाइड्रोजन के दो परमाणुओं के अनुपात में कोई विशिष्ट मात्रा न जोड़ दें जब
कि इस यौगिक की पूरी प्रकृति ही बदल जाती है और हमें नये गुणधर्मों से युक्त
एक नयी ही गैस ऐसीटिलीन मिलती है यह प्रक्रिया इसी प्रकार आगे बढ़ती
रहती है। मात्रा गुण में परिवर्तित हो गयी है। अब भौतिकी से एक सरल-सा
उदाहरण लेते हैं। पानी को उफष्मा देने से यह और गरम, और गरम होता जाता
है परन्तु एक निश्चित बिन्दु तक अन्तर मात्रा ताप के परिमाण का रहता है गहराई
में देखें तो ठण्डा पानी और गरम पानी एक ही द्रव होते हैं, पर जब दी गयी
उफष्मा एक निश्चित स्तर, 100ह्थ् या 212ह्थ् पर पहुँचती है तो पानी एकाएक
ही एक नये पदार्थ - भाप - में बदल जाता है, एक ऐसी गैस में जिसके गुणधर्म
पानी से नितान्त भिन्न हैं। मात्रा गुण में परिवर्तित हो गयी है। अब एक उदाहरण
इतिहास से लेते हैं। जब तक श्रमिक ज़मीन से बँधा था समाज भी भूदास व्यवस्था
के स्तर पर था। परन्तु उत्पादन और वाणिज्य के विकास के साथ-साथ ही यह
भी उत्तरोत्तर अधिक आवश्यक होता गया कि कुछ क्षेत्रों में श्रमिकों की मुक्त
उपलब्धता सुनिश्चित की जाये और यह तभी सम्भव हो सकता था जब मज़दूरों
या भावी मज़दूरों को उन स्थानों की यात्रा करने की स्वतन्त्राता हो जहाँ रोज़गार
के अवसर उपलब्ध हों।
साथ ही जैसे-जैसे कृषि के पुराने रूप और तरीव़फे पुराने
या भूस्वामियों के लिए अलाभप्रद होते गये वैसे-वैसे ही उन्होंने अपने भूमिदासों
को आवागमन की स्वतन्त्राता देना प्रारम्भ कर दिया या पिफर उनके बँधुआ श्रम का
अपने मौद्रिक भुगतानों या लगान के भुगतान के रूप में प्रयोग करना प्रारम्भ कर
दिया। इस तरह क्रमशः समाज में भूदासत्व के उन्मूलन के लिए परिस्थितियाँ
विकसित होती गयीं और जब यह विकास एक निश्चित अवस्था तक पहुँच गया
तो भूदासत्व स्वतन्त्रा निजी उत्पादन से विस्थापित हो गया। कुछ मामलों में यह
परिवर्तन बहुत अधिक हिंसा का परिणाम था जबकि कुछ अन्य मामलों में
अपेक्षतया कम हिंसा से ही काम चल गया। कुछ मामलों में परिवर्तन काप़फी तेज़ी
से तो कुछ अन्य मामलों में धीमे-धीमे हुआ। परन्तु सभी मामलों में यह एक
क्रान्तिकारी परिवर्तन था - एक नयी सामाजिक व्यवस्था ने पुरानी का स्थान ले
लिया क्योंकि नयी परिस्थितियों में परिवर्तन अनिवार्य हो गया था।
स्थानाभाव के कारण हम यहाँ सारे विज्ञानों और जीवन के सारे अनुभवों के
उदाहरण नहीं दे सकते। मार्क्स और एंगेल्स ने हीगेल के दर्शन से अध्ययन के
इन नियमों और प(तियों को अपनाया था। पर जहाँ वे हीगेल की द्वन्द्वात्मक
प(ति से दृढ़ता से जुड़े रहे वहीं उन्होंने उसकी भाववादी सै(ान्तिक अधिरचना
को अस्वीकार कर दिया।
अन्य सभी भाववादी दार्शनिक सम्प्रदायों की ही तरह
हीगेलियन दर्शन भी यह मानकर चलता है कि विचार वास्तविक परिस्थितियों के
बिम्ब नहीं होते, अपितु उनकी अपनी स्वतन्त्रा सत्ता होती है, और उनके विकास
पर ही अन्य सभी वस्तुओं का विकास आधारित होता है। मार्क्स और एंगेल्स ने
इस धारणा को नकार दिया। उन्होंने वास्तविक परिस्थितियों से स्वतन्त्रा व असम्ब(
विचार और विचारधारा की अवधारणा के स्थान पर भौतिकवाद, वस्तुगत विश्व,
प्रकृति, और इतिहास को सारे विकास का आधार बताया। 1845 में प्रकाशित
अपनी पुस्तक द होली प़फैमिली में उन्होंने इस नये द्वन्द्वात्मक भौतिकवाद को
अभिव्यक्ति देने के साथ ही साथ परम्परावादी बुर्जुआ हीगेलियनों द्वारा हीगेल के
दर्शन के अनुप्रयोग का खण्डन भी किया। आगे चलकर उन दोनों ने उसी विषय
पर एक और पुस्तक भी लिखी जो कि यद्यपि प्रकाशित नहीं हुई, परन्तु पिफर
भी जो उन्हें अपने विचारों को और भी स्पष्ट करने और अपनी भौतिकवादी
अवधारणाओं पर और भी बेहतर पकड़ बनाने में सहायक हुई।
इसी बीच मार्क्स पेरिस में राजनीतिक अर्थव्यवस्था के अध्ययन और प्रशाई
सरकार के विरु( गम्भीर विचारधारात्मक संघर्ष में लगे रहे। प्रशाई सरकार ने
इसका बदला मार्क्स को पेरिस से निष्कासित करवाके लिया। मार्क्स तब ब्रसेल्स
चले गये, जहाँ वे जब-तब डायचे ब्रस्सेलेर ज़ाइटुंग में लिखते रहे।
1846 की मुक्त व्यापार कांग्रेस में उन्होंने मुक्त व्यापार के बारे में एक भाषण
दिया जो बाद में एक पैम्प़फलेट के रूप में प्रकाशित हुआ, और 1847 में उन्होंने
प्रूधों की पुस्तक दरिद्रता का दर्शन के जवाब में प्ऱफांसीसी भाषा में दर्शन की
दरिद्रता लिखी। इस पुस्तक में मार्क्स ने हेगेल के द्वन्द्ववाद को अपने और एंगेल्स
के क्रान्तिकारी भौतिकवादी रूप में प्रयुक्त करते हुए सामाजिक विकास नियमों
को उजागर करने के साथ ही वैज्ञानिक समाजवाद के मूल तत्वों को भी विकसित
किया है।